Ganga : क्या है गंगा के पवित्र होने का रहस्य?

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डॉ. बृजेश सती

पृथ्वी पर यदि किसी तीर्थ को सर्वोच्च माना गया है, तो वह है गंगा (Ganga)। भौतिक रूप में जैसे सूर्य आकाश में प्रत्यक्ष देवता हैं, वैसे ही धरती पर बहती गंगा भी साक्षात दिव्यता की प्रतीक मानी जाती है। गंगा नदी न केवल धरती और स्वर्ग के बीच एक आध्यात्मिक सेतु है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की आत्मा भी है। इसके बिना भारतीय सभ्यता की कल्पना ही अधूरी है।

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, युगों से मां गंगा भू-लोक में जीवनदायिनी शक्ति बनकर प्रकृति और समस्त प्राणियों को संजीवनी प्रदान कर रही हैं। यह नदी न केवल पापों का नाश करती है, बल्कि मोक्ष का भी द्वार खोलती है।

गंगा (Ganga) मात्र एक जलधारा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना की अमूल्य निधि है। इसके पावन तटों पर ही वैदिक सभ्यता और संस्कृति का जन्म हुआ। वेद, पुराण और अनेक कालजयी साहित्य इसी गंगा के आंचल में रचे गए। इसीलिए इसे 'ज्ञान गंगा' भी कहा जाता है।

धर्म ग्रंथों में गंगा

वेद, पुराण, रामायण और महाभारत जैसे सभी प्रमुख हिंदू धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा और विशेषताओं का विस्तार से वर्णन मिलता है। गंगा (Ganga) को केवल एक नदी नहीं, बल्कि दैवीय अवतरण, पापों का नाश करने वाली शक्ति और मोक्षदायिनी देवी के रूप में चित्रित किया गया है।

कूर्म पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी, तो उनका दूसरा पग ब्रह्म लोक तक पहुंच गया। ब्रह्मा ने भगवान विष्णु के चरणों का जल से अभिषेक किया और उस पवित्र जल को अपने कमंडल में संचित किया। यही जल आगे चलकर गंगा के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।

वाल्मीकि रामायण में गंगा के अवतरण को और भी विस्तार से बताया गया है। जब गंगा शिव की जटाओं से मुक्त हुई, तो वह सात धाराओं में विभाजित हो गई। इनमें से हादिनी, पावनी और नालिनी पूर्व दिशा की ओर बहीं, जबकि सुयक्षु, सीता और सिंधु धाराएं पश्चिम दिशा में प्रवाहित हुईं। सातवीं धारा ने राजा भगीरथ का अनुसरण किया और उसी से भागीरथी गंगा का नाम पड़ा।

श्रीमद् भागवत पुराण में गंगा के अवतरण की कथा एक और रोचक रूप में मिलती है। त्रेतायुग में सूर्यवंशी राजा सगर का जन्म हुआ, जो राजा बाहुक के पुत्र थे। राजा सगर ने अपने पराक्रम से संपूर्ण पृथ्वी पर विजय प्राप्त की और अश्वमेध यज्ञ आरंभ किया। इस यज्ञ का घोड़ा देवराज इन्द्र द्वारा कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया गया।

जब राजा सगर के पुत्र घोड़े की खोज में वहां पहुंचे, तो उन्होंने कपिल मुनि को ध्यानमग्न अवस्था में देखा। उन्हें भ्रम हुआ कि मुनि ने ही घोड़ा चुरा लिया है, जिससे क्रुद्ध होकर उन्होंने मुनि से दुर्व्यवहार किया। मुनि ने क्रोध में आकर उन्हें श्राप दे दिया, जिससे सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए।

बाद में राजा सगर, उनके पौत्र अंशुमान और फिर प्रपौत्र भगीरथ ने इन पुत्रों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए घोर तप किया। राजा सगर और अंशुमान तो असफल रहे, लेकिन राजा भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा और शिव ने गंगा को भू-लोक पर आने की अनुमति दी। इस प्रकार गंगा का अवतरण हुआ, और सगर पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ।

इसलिए गंगाजल में बदबू नहीं आती... (Why Ganga water doesn’t rot)

गंगा, जो हिमालय की गहरी कंदराओं से निकलती है, अपने मार्ग में कई चट्टानों और खनिजों से संपर्क करती है, जिससे इसमें औषधीय गुण मिश्रित हो जाते हैं। इस दौरान गंगा के जल में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां और खनिज तत्व मिल जाते हैं, जो इसे विशिष्ट औषधीय गुण प्रदान करते हैं।

हर नदी के जल की अपनी जैविक संरचना होती है, जिसमें कुछ विशिष्ट पदार्थ पाए जाते हैं, जो खास तरह के जीवाणुओं को पनपने का अवसर देते हैं, जबकि कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु को नियंत्रित करते हैं। वैज्ञानिकों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि गंगा के जल में ऐसे अद्वितीय जीवाणु मौजूद होते हैं, जो सड़ने वाले कीटाणुओं की वृद्धि को रोकते हैं। यही कारण है कि गंगा का पानी लंबे समय तक खराब नहीं होता और उसमें ताजगी बनी रहती है।

गंगा (Ganga) के जल के इन गुणों को समझते हुए, वैज्ञानिकों ने इसे न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना है।

वैज्ञानिक मानते हैं कि हरिद्वार में गोमुख-गंगोत्री (Gomukh-Gangotri) से आने वाली गंगा के जल की गुणवत्ता पर कोई दुष्प्रभाव इसलिए नहीं पड़ता, क्योंकि यह हिमालय की उन घाटियों से होकर बहती है जहां अनेकों जीवनदायिनी औषधीय जड़ी-बूटियां, खनिज और प्राकृतिक लवण पाए जाते हैं। गंगाजल (Ganga Jal) इन सभी को छूता हुआ नीचे उतरता है, जिससे उसमें औषधीय गुण अपने आप आ जाते हैं।

हिमालय की गोद से निकली गंगा के जल की शुद्धता के पीछे कई वैज्ञानिक कारण हैं। शोधों से पता चला है कि इस पवित्र जल में बैट्रियोफाज (bacteriophage) नामक एक विशेष प्रकार का वायरस पाया जाता है, जो जल में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और रोगाणुओं को नष्ट करता रहता है। यही वजह है कि गंगाजल लंबे समय तक खराब नहीं होता।

इसके अतिरिक्त, गंगा (Ganga) के पानी में गंधक (सल्फर) की भी पर्याप्त मात्रा होती है, जो जल को संक्रमण से बचाने में सहायक होती है। भू-रासायनिक प्रतिक्रियाएं भी गंगाजल की संरचना को विशिष्ट बनाती हैं, जिससे उसमें कभी कीड़े नहीं पड़ते और यह जल पीने योग्य बना रहता है।

हालांकि, जैसे-जैसे गंगा हरिद्वार (Haridwar) से आगे अन्य शहरों की ओर बहती है, उसमें शहरों का कचरा, औद्योगिक रसायन और कृषि अपशिष्ट मिलते जाते हैं, जिससे इसकी पवित्रता और शुद्धता पर असर पड़ता है।

विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों में यह प्रमाणित हुआ है कि गंगाजल (Ganga Jal) से स्नान करने और उसका सेवन करने से हैजा, प्लेग, मलेरिया और क्षय (टीबी) जैसे गंभीर रोगों के कीटाणु नष्ट हो सकते हैं। यही कारण है कि गंगाजल को न केवल धार्मिक बल्कि चिकित्सकीय दृष्टि से भी अमूल्य माना गया है।

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